श्री विश्वकर्मा अष्टक

आदिरुप नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं पितामह।
विराटाख्य नमस्तुभ्यं विश्वकर्मन्नमोनमः।। 1।।
आकृतिकल्पनानाथ स्त्रिनेत्री ज्ञाननायकः।
सर्वसिद्धिप्रदाता त्वं विश्वकर्मन्नमोनमः।।2।।
पुस्तकं ज्ञानसूत्रं च कम्बी सूत्रं कमंडलुम।
धृत्वा संमोहयन देव विश्वकर्मन्नमोनमः।।3।।
विश्वात्माद भुतरुपेण नानाकष्ट संहारक।
तारकानादिसंहारात विश्वकर्मन्नमोनमः।।4।।
ब्रह्माण्डाखिलदेवानां स्थानं स्वर्भूतलं तलम।
लीलया रचितं येन विश्वरुपाय ते नमः।।5।।
विश्वव्यापिन्नमस्तुभ्यं त्रययंवकं हंसवाहन।
सर्वज्ञेत्रनिवासाख्यं विश्वकर्मन्नमोनमः।।6।।
निराभासाय नित्याय सत्यज्ञानान्तरात्मने।
विशुद्धाय विदूराय विश्वकर्मन्नमोनमः।।7।।
नमो वेदान्तवेद्याय वेदमूलनिवासिने।
नमो विविक्तचेष्टाय विश्वकर्मन्नमोनमः।।8।।
यो नरः पठते नित्यं विश्वकर्माष्टकं इदम।
धनं धर्म च पुत्रं च लभेदान्ते परां गतिम।।9।।